“उसने कहा, मैं अकेली हूँ।
पर मुझे लगता है, कोई हर रात मेरी खिड़की से मुझे देखता है…” Psychological Thriller Story
अनुष्का, 29 साल की राइटर, मुंबई में एक अकेले अपार्टमेंट में रह रही थी।
हर रात उसे लगता, कोई उसे घूर रहा है।
खिड़की से बाहर देखती, पर वहाँ सिर्फ एक खाली इमारत थी – 7 साल से वीरान।
लेकिन हर रात ठीक 2:33 AM, उस इमारत की एक आख़िरी खिड़की में रोशनी जलती थी।
🧠 Hallucination या सच? | Psychological Thriller Story
अनुष्का के दोस्तों ने कहा –
“तू ज्यादा अकेली रहने लगी है, तेरा दिमाग़ तुझसे खेल कर रहा है।”
उसने खुद को समझाया – “शायद ये सब मेरे ही मन का वहम है…”
लेकिन अगली रात…
खिड़की में एक चेहरा नजर आया – उसकी हूबहू शक्ल वाला।
📓 पुरानी डायरी का राज़…
अनुष्का ने एक पुरानी डायरी पढ़नी शुरू की जो उसे नए घर में मिली थी।
उसमें लिखा था –
“जो इस खिड़की को लगातार देखेगा, वो खुद को खो देगा… और एक दिन वो चेहरा तुम्हारा नहीं होगा, बल्कि तुम्हारे दिमाग़ का सबसे डरावना हिस्सा होगा…”

💣 अनुष्का कौन है? | Psychological Thriller Story
रातों की नींद उड़ चुकी थी। अनुष्का ने पुलिस को कॉल किया, लेकिन जब उन्होंने उसके घर की जांच की…
वहाँ कोई डायरी नहीं मिली।
कोई पुराना पेपरट्रे नहीं,
यहाँ तक कि उसकी खुद की पहचान भी “अनुष्का” के नाम पर रजिस्टर्ड नहीं थी।
🧩 सच सामने आता है…
डॉक्टर के पास जाने के बाद पता चला –
अनुष्का Dissociative Identity Disorder से जूझ रही थी।
वो कभी किसी और की पहचान ले लेती, और उसी में जीती थी।
7 साल पहले उसी इमारत की आख़िरी खिड़की में उसने खुद को कूदते देखा था – और तब से वो अपने ही “दूसरे रूप” का पीछा कर रही थी।
🕳️ क्लाइमेक्स:
रात 2:33 बजे, जब फिर वो चेहरा नजर आया…
अनुष्का इस बार डर कर नहीं भागी।
उसने उस खिड़की को देखा – और खुद से कहा:
“अब बस। मैं अपने डर से जीतूँगी…”
अगले दिन, वो खिड़की बुझी हुई थी।
हमेशा के लिए।
💭 कहानी का सार: | Psychological Thriller Story
“कभी-कभी सबसे बड़ा दुश्मन बाहर नहीं होता… बल्कि वो हमारे दिमाग़ में छुपा होता है।”